कतरा-कतरा ज़िंदगी का पी लेने दो बूँद बूँद प्यार में जी लेने दो
हल्का-हल्का नशा है
डूब जाने दो रफ्ता-रफ्ता “मैं” में राम जाने दो
जलती हुई आग को
बुझ जाने दो आंसूओं के सैलाब को बह जाने दो
टूटे हुए सपने को
सिल लेने दो रंज-ओ-गम के इस जहां में बस लेने दो
मकाँ बन न पाया फकीरी
कर लेने दो इस जहां को ही अपना कह लेने दो
तजुर्बा-इ-इश्क है खराब
समझ लेने दो अपनी तो ज़िंदगी बस यूं ही जी लेने दो |
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अगस्त 24, 2010
जी लेने दो
अगस्त 09, 2010
जो आनंद है ............
जो आनंद है फूल गंध में
जो आनंद है पंछी धुन में
जो आनंद है अरुण आलोक में
जो आनंद है शिशु के प्राण में
जिस आनंद से वातास बहे
जिस आनंद में सागर बहे
जो आनंद है धूल कण में
जो आनंद है तृण दल में
जिस आनंद से आकाश है भरा
जिस आनंद से भरा है तारा
जो आनंद है सभी सुख में
जो आनंद है बहते रक्त-कण में
वो आनंद मधुर होकर
तुम्हारे प्राणों पर पड़े झरकर
वो आनंद प्रकाश की तरह
रह जाए तुम्हारे जीवन में भरकर
कवि श्री सुकुमार राय के कविता से अनुदित
अगस्त 05, 2010
काली घटा
ये काली घटा ने देखो
क्या रंग दिखाया
नाच उठा मन मेरा
हृदय ने गीत गाया
सूखी नदियाँ प्लावित हुई
जीवन लहलहाया
दादुर,कोयल,तोता,मैना ने
गीत गुनगुनाया
तप्त धरती शीतल हुई
बूंदे टपटपाया
धरती ने आसमान को छोड़
बादल को गले लगाया
रवि ज्योति मंद पड़ा
मेघ गड़गड़ाया
नृत्य मयूर का देख
ये मन मुस्कराया
अब इसे भी बर्दाश्त कर लीजिये
क्या रंग दिखाया
नाच उठा मन मेरा
हृदय ने गीत गाया
सूखी नदियाँ प्लावित हुई
जीवन लहलहाया
दादुर,कोयल,तोता,मैना ने
गीत गुनगुनाया
तप्त धरती शीतल हुई
बूंदे टपटपाया
धरती ने आसमान को छोड़
बादल को गले लगाया
रवि ज्योति मंद पड़ा
मेघ गड़गड़ाया
नृत्य मयूर का देख
ये मन मुस्कराया
अब इसे भी बर्दाश्त कर लीजिये
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